सन्नाटा खिंचे दिन
हाइकुकार- शैल रस्तोगी
मूल्य 75 रुपए
संस्करण प्रथम, 2001
प्रकाशक-
साहित्य वीची प्रकाशन 27/111 विश्वास नगर शाहदरा दिल्ली-32
सुप्रसिद्ध नवगीतकार और प्रतिष्ठित हाइकुकार डॉ० शैल रस्तोगी का सद्य प्रकाशित हाइकु संग्रह सन्नाटा खिचे दिन” में 341 हाइकु कविताएँ हैं। भाव जगत में पसरे सन्नाटे को
तोड़ने की दिशा में शैल जी के हाइकु एक सार्थक पहल करते प्रतीत होते हैं। प्रतीक और बिम्बों के माध्यम से भाव व्यक्त करने में दक्ष शिल्पी शैल रस्तोगी हाइकु के प्रति बेहद गम्भीर हैं। उनके हाइकु पाठक के मानस पटल पर लम्बे समय तक प्रभाव बनाए रखने में सक्षम हैं,
यह हाइकुकार की सफल प्रस्तुति का परिचायक है। इसी संग्रह से कुछ हाइकु-
करते नहीं / सन्नाटा खिंचे दिन / गूंगी बस्तियाँ (पृ०-8)
शिक्षिका हवा /आते ही लताड़ती / शिशु फूलों को (पृ०-9)
पख पसारे / मुंडेरी पै बैठी/ गौरैया धूप
(पृ०-33)
लेटी है घाटी/ लाचार एक नारी /पर्वत तले (पृ०-64)
डॉ०भगवत शरण अग्रवाल द्वारा लिखी गई भूमिका इस संग्रह के महत्व को और बढ़ाती है, इससे पाठकों को संग्रह की हाइकु कविताओं एवं हाइकुकार को समझने में विशेष सुविधा होगी। संग्रह मे अधिकतर हाइकु विशेष प्रभाव छोड़ने वाले हैं,वहीं खोजने पर कुछ ऐसे
भी हाइकु मिल सकते हैं जिनमें 5-7-5 वर्ण क्रम का निर्वाह तो हुआ है परन्तु उनमें हाइकु की आत्मा का सर्वथा लोप है और वे सामान्य कथन मात्र बनकर रह गए हैं। ऐसे हाइकु, संग्रह को कमजोर तो बनाते ही हैं साथ ही नए हाइकुकारों के भ्रमित हो जाने की अनेक संभावनाएँ
भी इनमें निहित रहती हैं। ऐसे ही कुछ हाइकु-
मॅहगाई ने / गुड़ गोबर की है / सारी प्लानिंग । पृ०-61
अब न रहा / ये निठुर संसार / रहने योग्य
1 पृ०-62
बरसात में / पता ही नहीं चलता / भोर साँझ का।
पृ०-31
डॉ० शैल रस्तोगी वरिष्ठ हाइकुकार के साथ-साथ एक समर्थ हाइकुकार हैं।
“जले अलाव / हाथ तापने लगी / कुबड़ी रात ।" जैसे हाइकु देने वाली शैल जी से हाइकु साहित्य संसार को बहुत अपेक्षा है। उनका हाइकु संग्रह “सन्नाटा खिंचे दिन” हाइकु प्रेमी सहज विश्वास है।
पाठकों को बेहद पसंद आएगा और इस संग्रह की अच्छी-खासी चर्चा होती रहेगी। ऐसा मेरा
समीक्षा- डा० जगदीश व्योम