Wednesday, December 05, 2012

अकडू भुट्टा


अकड़ू भुट्टा

- गोविन्द सेन

निखिल प्रकाशन, मनावर (धार)
 संस्करण-2002
 पेपर बैक,
पृष्ठ -28
मूल्य- 15 रुपए।

कविता किसी भाषा विशेष तक सीमित होकर नहीं रहती। हाइकु कविता जापानी चित्रलिपि से बाहर निकलकर आज पूरे संसार की सैर कर रही है। हिन्दी की लगभग सभी बोलियों में हाइकु लिखे जा रहे हैं। यह प्रवृŸिा भाषाई ऊर्जा के लिए बहुत सुखद संकेत है। क्षेत्रीय बोलियाँ जीवन्त मुहावरों, लोकोक्तियों और स्थानीय शब्दों के प्रचुर भण्डार हैं।  गोविन्द सेन का ‘अकड़ू भुट्टा’ इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्य है। निमाड़ी बोली में यह कवि का प्रथम हाइकु संग्रह है।  संग्रह में 110 हाइकु कविताएँ हैं जो विशुद्ध निमाड़ी में लिखी गईं हैं। संग्रह के सभी हाइकु प्रभावशाली हैं निमाड़ी समझने वाले इसे बेहद पसन्द करेंगे और निकट भविष्य में निमाड़ी में और संग्रह पढ़ने को मिल सकेेंगे। कुछ हाइकु इस संग्रह से-
लागज़  वकऽ / घर मऽ माय-बाप / अटाळा जसा  । (पृ0-08)
साकटी जसी / पातळी पड़ी नद्दी / पाणी सूकाण्यो । (पृ0-20)
पेट भरातो / होतो रोटो यो चाँद / खातो खवातो  । (पृ0-26)
अकड़ू  भुट्टा / आखरी मऽ कुटाण्या / खळण्या नऽ सी। (पृ0-27)
खुद क ऽ तोल्यो / मन की ताकड़ी प ऽ / हळ्को निकळ्यो। (पृ0-27)
संग्रह के हाइकु लोक प्रचलित भाषाई संस्कारों से युक्त हैं इसलिए बेहद प्रभाव छोड़ते हैं। निमाड़ी शब्दों के कुछ अर्थ साथ में दिए गए हैं इससे संग्रह पढ़ने में सुविधा रहेगी। भूमिका निमाड़ी में न लिखकर हिन्दी में लिखी है इससे संग्रह निमाड़ी के अतिरिक्त अन्य पाठकों को भी पसन्द आयेगा। रचनाकार की यह दृष्टि उसके भाषागत समन्वय की परिचायक है। 32 पृष्ठ की इस पुस्तक का मूल्य मात्र 15 रुपए है जो सभी की पहुँच में है।


-(हाइकु दर्पण, अंक - 03 से साभार)






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