Friday, December 07, 2012

वियोगिनी



वियोगिनी


डॉ0 रामनारायण पटेल ‘राम’
मानस मंदिर प्रकाशन, ठाकुरदिया, पो0-नारंगपुर, जिला-रायगढ (छ.ग.)
प्रथम सं. -1998 , पेपर बैक, पृष्ठ-64
मूल्य मुद्रित नहीं।

 डॉ0 रामनारायण पटेल ‘राम’ का हाइकु छन्द में रचित खण्डकाव्य ‘वियोगिनी’ 1998 में प्रकाशित हुआ है। हाइकु कविता में अनेक प्रयोग निरन्तर होते रहे हैं। इनमें हाइकु गीत, हाइकु नवगीत, हाइकु गज़ल, हाइकु पहेलियाँ, हाइकु दो सुखने आदि। परन्तु हाइकु छन्द में खण्डकाव्य की रचना करना और उसे पूरी तरह से निभाना निश्चय ही कठिन कार्य है। सीता के वनवास के कथानक को लेकर सात सर्गों में रचनाकार ने इसे निबद्ध किया है। मंगलाचरण में 7 हाइकु, प्रथम सर्ग में 78, द्वितीय सर्ग में 89, तृतीय सर्ग में 82, चतुर्थ सर्ग में 74, पंचम सर्ग में 71, षष्ठ सर्ग में 100 एवं सप्तम् सर्ग में 71 हाइकु हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 572 हाइकु इस खण्डकाव्य के कथानक को प्रस्तुत करते हैं। रामकाव्य परम्परा में विविध छन्दों में समय-समय पर रामकाव्य या उसके अंशों को सृजन हेतु चुना जाता रहा है। हाइकु छन्द का पहली बार प्रयोग डॉ0 रामनारायण पटेल ने किया है और वह भी पूरी आस्था और सघन साधना के साथ। यह पुरातन और नवीन का अद्भुत संयोजन है। इस कृति की चर्चा होनी चाहिये ताकि पाठकों को इस विषयक जानकारी हो सके। विशेष रूप से हाइकु पाठकों को। कथासूत्र कहीं बिखर नहीं पाया है और भाषा में सरलता तथा संप्रेषणीयता बनी रही है। चतुर्थ सर्ग में लव कुश की बातों के कुछ अंश दृष्टव्य हैं-
 लव औ कुश   / निर्भीक थे वन में    /   हाँ, निर्जन में।  (4/59)
 हे लव भैया    /  माता से माँगें चाँद  / देखो संप्रिय ।    (4/61)
 चलो न भैया   / फिर माँगेंगे रवि     /  कन्दुक खेलें ।   (4/62)
 माँ ही खिलौना  / शशि-सूरज माँ ही / स्वयं तो खेल।     (4/65)
 इतनी श्रेष्ठ कृति में यदि वर्तनीगत कुछ अशुद्धियाँ रह जायें तो वे खटकतीं हैं। इस पुस्तक में भी कुछ अशुद्धियाँ देखने को मिलीं जिन्हें दूर किया जा सकता था। जैसे- जुझने (अपनी बात), प्रतिक्षा (पृ.-9), रूक (पृ.-10), परिक्षा (पृ.-10), श्रृंगार (पृ.-11), ब्रम्हाण्ड (पृ.-13), रूचिर (पृ.-17), मुहुर्त (पृ.-33), चुम (पृ.-42), झुमते (पृ.-49), पूज्यनीय (पृ.-51) आदि। कुल मिलाकर इस कृति का भरपूर स्वागत होगा। पेपर बैक संस्करण में 64 पृष्ठ की इस पुस्तक का मूल्य मुद्रित नहीं है शायद छूट गया है। महत्वपूर्ण कृति के प्रकाशन पर डॉ0 रामनारायण पटेल को हार्दिक बधाई।

-(हाइकु दर्पण, अंक - 03 से साभार)



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