Wednesday, December 05, 2012

बाल श्री


बाल श्री 


डा० रमाकान्त श्रीवास्तव

कहा जाता है कि जिसने बच्चों के लिए नहीं लिख पाया उसका लेखन अपूर्ण है। बच्चों के लिए हाइकु कविता में भी बहुत कुछ लिखा जा रहा है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ0 रमाकान्त श्रीवास्तव का हाइकु संग्रह ‘बाल श्री’ वर्ष 2002 में प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में कुल 111 हाइकु हैं। इनमें से अधिकतर हाइकु अच्छे हैं। इन्हें पढ़ते समय इर्द-गिर्द बच्चों की दुनिया उपस्थित हो जाती है और दूधिया वात्सल्य परिवेश में घुल जाता है, यही इस संग्रह की उपलब्घि है-
बच्चों से जुड़ो / छोड़ो हैवानियत /आदमी बनो। (पृ0-12)
तुतली बोली / शब्द शब्द वात्सल्य / मोहती मन। (पृ0-13)
शिशु की खुशी / उठा गिरा पाँवों को / होती व्यंजित। (पृ0-13)
डॉ0 श्रीवास्तव के पास संपादन एवं साहित्य सृजन का बहुत लम्बा अनुभव है। हाइकु कविता संसार को अभी रमाकान्त जी से अनेक अपेक्षाएँ हैं। संग्रह के आधे भाग में हाइकुकार के पूर्व प्रकाशित हाइकु संग्रहों पर लिखे गए देश भर के विद्वानों के पत्रांशों को छापा गया है जिससे रचनाकार को समझने में पाठकों को सुविधा रहेगी। इस संग्रह का भरपूर स्वागत होगा। पेपर बैक संस्करण 32 पृष्ठीय इस संग्रह का मूल्य मात्र 10 रुपए है, जो प्रशंसनीय है और अनुकरणीय भी।

-(हाइकु दर्पण, अंक - 03 से साभार)

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