Wednesday, December 05, 2012

भारतीय हाइकु



भारतीय हाइकु 




INDIAN  HAIKU
 हाइकु चुनाव एवं अग्रेजी अनुवाद-
डा० अंजली देवधर (भारत)
संस्करण-2008
 मूल्य रु0 100  (2.5 डालर), (500 येन )         
पेपर बैक, पृष्ठ-75
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दुनिया की सबसे छोटी कविता हाइकु यानी मूलतः कविता की जापानी शैली, जिसका भारतीय भाषाओं से सर्वप्रथम परिचय 1919 ई0 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कराया था और 1959 में हिन्दी में जिसकी प्रथम चर्चा का श्रेय अज्ञेय को दिया जाता है, भारत में अब किसी परिचय की मोहताज नहीं है। विशेष रूप से हिन्दी रचनाकारों ने 17 अक्षरों वाली इस त्रिपदी कविता के प्रति जैसा उत्साह दिखाया है वह अपने आप में अभूतपूर्व है। लेकिन इस वैश्विक परिदृष्य में हिन्दी हाइकु की रचनाधर्मिता को पूरे विश्व तक पहुँचाने का जो बीड़ा डॉ0 अंजलि देवधर ने उठाया है वह अपने आप में ऐतिहासिक प्रयास है। जापानी भाषा से सीधे भारतीय भाषाओं के साथ हाइकु का प्रथम परिचय कराने वाले जे.एन.यू. के पूर्व जापानी भाषा के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष प्रो० सत्यभूषण वर्मा (4.12.1932 - 13.01.2005) के बाद, जिन्हें भारत में हाइकु-सृजन को आन्दोलन का स्वरूप देने के लिए याद किया जाता है, भारत के हाइकु-संसार को डॉ. अंजलि देवधर के रूप में एक नया मसीहा मिल गया है। चण्डीगढ़ की वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ0 अंजलि देवधर ने अभी पिछले वर्ष ही पतझड़ में ‘हाइकु प्रवेशिका’ नाम से विश्वभर के बच्चों की चुनी हुई 306 हाइकु कविताओं को अंग्रेजी/हिन्दी अनुवाद के रूप में प्रस्तुत किया था और अब वर्ष 2008 के बसन्त में उन्होंने एक और द्विभाषिक ऐतिहासिक प्रस्तुति के रूप में ‘भारतीय हाइकु INDIAN   HAIKU शीर्षक से एक बहुत प्यारी-सी पुस्तक का अनुवाद और प्रकाशन किया है। कोई 75 पृष्ठों वाली इस पेपर बैक पुस्तक में 105 हाइकु कविताएँ अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रस्तुत की गयी हैं।
‘भारतीय हाइकु’ पुस्तक में मुख्य रूप से देश-विदेश के रचनाकारों द्वारा हिन्दी में लिखी गई हाइकु कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद संकलित करने के साथ-साथ कुछ अंग्रेजी भाषा की हाइकु कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी संकलित किया गया है। अपवाद स्वरूप शिरीष पै का एक हाइकु मराठी में शामिल किया गया है। (हाइकु दर्पण में प्रकाशित) विदेशी हाइकुकारों में आस्ट्रेलिया, फीजी, अमरीका, ब्रिटेन, नार्वे, कुवैत, सिंगापुर, यू0ए0ई0 कनाडा आदि देशों के रचनाकार हैं जो मुख्यतः वहाँ प्रवास में रहकर हाइकु-सृजन कर रहे हैं। हिन्दी हाइकुकारों में तमाम महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों के हाइकु संकलित किए गए हैं- (पूरी सूची अलग से दी जा रही है) 
प्रवासी रचनाकारों में से पूर्णिमा वर्मन (यू.ए.ई.), अश्विन गाँधी व मानोषी चटर्जी (कनाडा) अनूप भार्गव, देवी नागरानी, लावण्याशाह, शकुन्तला तलवार (अमरीका), प्रदीप मैथानी (सिंगापुर), शैल अग्रवाल (ब्रिटेन), जैनन प्रसाद (फीजी), हरिहर झा (आस्ट्रेलिया) आदि इस पुस्तक के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं।
’भारतीय हाइकु’ में संकलित अनेक रचनाओं की गुणवत्ता निःसन्देह उल्लेखनीय है। संकलित सभी हाइकु जापानी में विधा की मूल संस्कृति अर्थात् प्रकृति-परकता से युक्त है। हिन्दी हाइकु चाहे वे देश की धरती की उपज हों या प्रवास में विदेश की धरती से जन्में हों, उनमें अधिकांश में 5-7-5 के वर्णक्रम के अनुशासन का भी विशेष ध्यान रखा गया है। उदाहरण स्वरूप कुछ महत्त्वपूर्ण हाइकु रचनाएँ देखी जा सकती हैं:-
खिले कमल
जलाशय ने खोले
सहस्र नेत्र।
(रमाकान्त श्रीवास्तव पृ०-11)




आसमान में
इतनी कविताएँ
छापी किसने?
-(नलिनी कान्त पृ०-11)




मटमैला-सा
पीकर जल खेत
हरे हो गए।
(शम्भूशरण द्विवेदी बन्धु पृ०-9)



हवा उड़ाए
आकाश में पतंग
शिशु का मन।
(जवाहर इन्दु पृ०-7)




पगली हवा
बतियाते न थकी
सो गए पेड़।
(डा० शैल रस्तोगी पृ०-6)




लो खुल गयी
सूरज की गठरी
बिखरा दिन।
(पूर्णिमा वर्मन पृ०-23)




सर्दी की रात
नानी की कहानियाँ
मीठी गजक।
 (अनूप भार्गव पृ०-24)



अंग्रेजी भाषा में यह अनुशासन भिन्न रूप में होता है, अतः 5-7-5 की अनिवार्यता वहाँ खत्म हो जाती है। ऐसी कुछ अंग्रेजी रचनाओं के हिन्दी अनुवाद द्रष्टव्य हैं:-

आधा खाया हुआ
एक दैत्य से
वह नव चन्द्रमा ।
(गौतम नादकर्णी पृ०-31)



रेतीला तूफान
वर्षा की गन्ध
कहीं न कहीं से ।
(राजीव लाथर पृ०-32)




चन्द्रकिरणें
वीणा के तारों पर
उसकी उँगलियाँ ।
(डॉ० विदुर ज्योति पृ०-34)




आशा है, डॉ० अंजलि देवधर के इस महत्त्वपूर्ण प्रयास से भारतीय विशेष रूप से हिन्दी हाइकु दूसरी भाषाओं में भी अपनी चमक बिखेरने में सफल हो सकेंगे। अपने अंग्रेजी अनुवाद में डॉ० देवधर काफी हद तक हिन्दी हाइकु कविताओं की आत्मा को सुरक्षित रखने मे सफल हो सकी हैं। इस कड़ी में  यदि उनका अगला प्रयास सभी भारतीय भाषाओं से प्रतिनिधि हाइकु चुनकर उनके हिन्दी व अंग्रेजी अनुवाद को प्रकाशित करने का हो तो कदाचित सही अर्थों में भारतीय हाइकु का समेकित आस्वाद दूसरी भाषाओं को प्राप्त हो सकेगा।

समीक्षक-
-कमलेश भट्ट कमल

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